Wednesday, August 19, 2009

सांच को आंच !

सांच को आंच नहीं... सत्य शिव है... सदा सच बोलो... झूठ बोलना पाप है... हम में से ज्यादातर लोगों की परवरिश कुछ ऐसे ही उपदेशों के साथ होती है... लेकिन जिस तरह, कबीरदास के दोहे पढ़ने के बाद भी दुनिया, माया, मोह और नारी से मुक्त नहीं हो पाती.. उसी तरह इंसान अपनी सांसारिक जिंदगी को सिर्फ सच के सहारे नहीं जी पाता... कई छोटी बड़ी खुशियों के लिए उसे झूठ का सहारा लेना पड़ता है... सच आत्मा की आवाज होती है... जबकि झूठ मन का विकार... ये चर्चा इसलिए कर रहा हूं क्योंकि आजकल सच को लेकर दिखाए जा रहे एक टीवी सीरियल को लेकर देश भर में घमासान मचा हुआ है...टीवी चैनल स्टार प्लस पर प्रसारित होने वाला शो सच का सामना... शुरुआत से ही सुर्खियों में है... इस कार्यक्रम में पूछे जानेवाले बेदह अंतरंग और निजी सवालों पर संसद में भी एतराज जताया जा चुका है । बावजूद इसके, इस शो के दर्शकों और हॉट सीट पर बैठकर हर सच का बेबाकी से सामना करनेवाले लोगों की कोई कमी नहीं... हां इतना जरुर है कि कई मर्तबा शो के दौरान पूछे गए सवालों से... जवाब देने बैठा प्रतियोगी भी खुद को मुसीबत में फंसा महसूस करने लगता है... लेकिन इस शो ने मेरठ में एक महिला को ऐसी मुसीबत में डाल दिया... जिसमें उसका पति ही बन बैठा उसकी जान का दुश्मन... सिर्फ एक सच ने इस पत्नी को अस्पताल के बिस्तर पर और उसके पति को सलाखों के पीछे पहुंचा दिया.. मेरठ के जानी थाना इलाके में रहनेवाले एक दंपत्ति पर टीवी सीरियल सच का सामना का सुरुर कुछ ऐसा चढ़ा ... कि दोनों असल जिंदगी में खेलने लगे सच का खेल... गेम खेलने के लिए पति... पत्नी को एक नहर के किनारे ले गया... जहां उसने पत्नी को प्रतियोगी की सीट पर बिठाते हुए दागा एक बेहद निजी सवाल
सवाल- क्या तुम्हारे दोनों औलादों का पिता मैं ही हूं ?
सवाल के बदले में पत्नी ने जो जवाब दिया... वो सच तो था...लेकिन उस सच को सुनते ही पति ने पत्नी पर कर दिया जानलेवा हमला...
अब सुनिए क्या था वो जवाब

पति का सवाल- क्या तुम्हारी दोनों औलादों का पिता मैं ही हूं ?

पत्नी का जवाब- दो संतानों में से एक के पिता आप हैं..
यानी एक बेटा पत्नी के नाजायज संबंधों का नतीजा था
इस कड़वी हकीकत को सुनने के बाद... पति ने अपना आपा खोते हुए पत्नी के गले पर ब्लेड से कई वार कर दिए .. और फिर पत्नी को मरा हुआ समझकर पति वहां से फरार हो गया।
लेकिन, महिला मरी नहीं थी.. बाद में कुछ लोगों ने सच का शिकार हुई उस महिला को जख्मी हालत में अस्पताल पहुंचाया.. जहां डॉक्टर सच का कहर झेलने वाली उस औरत की जान बचाने में जुटे हैं..
उधर एक बात ये भी सामने आई है कि पति को पहले से ही पत्नी के नाजायज रिश्ते होने का शक था.. जिसके लिए उसने पत्नी को बहला फुसला कर सच उगलवाया और फिर जो हुआ उससे आप वाकिफ हो चुके हैं...
ऐसा नहीं कि वो महिला नाजायज रिश्ता बनानेवाली अकेली महिला है... बल्कि हमारी आंखें हर रोज कई नाजायज रिश्तों को देखती है... भारतीय संस्कृति में रिश्तों के प्रति समर्पण की भावना को वही दर्जा प्राप्त है... जो वेद उपनिषदों औऱ पुराणों में सच को... यानी सच और रिश्तों के प्रति समर्पण की भावना दोनों महान और एक समान तप के समतुल्य हैं... ऐसे में अगर हम एक तप नहीं करते... औऱ दूसरे तप से पहले की गई गलती का प्रयाश्चित करने की चेष्टा करेंगे तो कई बार ऐसा अंजाम होना स्वाभाविक है... बहरहाल मेरठ की घटना ने ये साफ कर दिया है कि... टीवी के पर्दे पर सच सुर्खियां भले ही बटोरे...लेकिन असल जिंदगी में कई सच बेपर्दा होते ही... तबाही का रास्ता बन जाते हैं।

Tuesday, August 18, 2009

क्या यही प्यार है ?

उसकी आंखें बोलती हैं..
बड़ी-बड़ी हैं शायद इसलिए वो तेज आवाज करती हैं
मेरी आंखों से जब भी टकराती हैं उसकी आंखें
पहले टक्कर में उसकी पलकें जल्द ही गिर जाती हैं
और कपोलों पर उमंग के साथ अधरों पर तरंगें छा जाती हैं
फिर कुछ देर तक छा जाती है खामोशी
उस खामोशी में सुनाई देती है तो सिर्फ धड़कनों की तेज आवाजें...
वो आवाज देती है ताकत पलकों को उठाकर उसे फिर से देखने का
दिल कहता है बहुत अच्छा चल रहा है
दिमाग कहता है... बेटा संभल के
मैं अक्सर दिल की नहीं सुनता
लेकिन उस वक्त मेरा दिमाग हार जाता है
दिल हिलोरे मारने लगता है
आंखे फिर उन झील सी गहरी आंखों से चार होने को बेताब हो जाती है
शायद उसके साथ भी ऐसा ही कुछ होता है
तभी तो मेरे देखते ही वो भी मेरी आंखों को निहारने लगती है
मानो जैसे खामोंशी में दो दिलों ने एक दूसरे की बात सुन ली हो
ये सिलसिला हर रोज दो या तीन बार होता है
इसके बाद उसके जाने का वक्त हो जाता है
जाते वक्त मैं उसके घनघोर जुल्फों में खो जाता हूं..
लेकिन न जाने उसे कैसै इसका भी पता चल जाता है
और वो आखिरी बार मुझे उस मोड़ से देखती है..
जहां से देखने की अंतिम संभावनाएं होती हैं...
इसके बाद उसे कैसा लगता है मुझे नहीं मालूम
लेकिन कुछ पल की मायूसी के बाद
मैं फिर करने लगता हूं अगले दिन का इंतजार...
क्या इसी को कहते हैं.. मुहब्बत, इश्क और प्यार