हमने भी इश्क किया था इक जमाने में
हमारा भी नाम था शामिल दीवानों में
यहां तो उम्र की हिलोरें बन गई है मुहब्बत
पर हमे तो इश्क हुआ था उनसे अनजाने में
यहां... कोई हाथ किसी को देता है
निगाहें कहीं और होती है
ये सब तो टाइम पास हैं
मनचाही कहीं और होती है
शायद काम बन जाए...
लगाए बैठे हैं जोर ये सबको आजमाने में...
किसी को किसी के है चाल ने लूटा
किसी को किसी के है बाल गाल ने लूटा
यहां तो आशिक हैं सभी कंचन कोमल काया के
पर हमे तो लूटा था उनकी पलकों के मयखाने नें...
मैंने उसकी और उसने मेरी भावनाओं को समझा था
जुबां तक प्यार से लदी है हमारी
और वो आज तक शरमाती है
नजरें मिलाने में, नजरे मिलाने में....
हमने भी इश्क किया था इक जमाने में
नोट- ये रचना साल 2006 की है... तब मैं रांची के संत जेवियर्स कॉलेज से बीए कर रहा है... रचना के लिए उपयुक्त हालात औऱ पृष्ठभूमि मुझे कॉलेज प्रांगण में ही प्राप्त हुए थे