हमने भी इश्क किया था इक जमाने में
हमारा भी नाम था शामिल दीवानों में
यहां तो उम्र की हिलोरें बन गई है मुहब्बत
पर हमे तो इश्क हुआ था उनसे अनजाने में
यहां... कोई हाथ किसी को देता है
निगाहें कहीं और होती है
ये सब तो टाइम पास हैं
मनचाही कहीं और होती है
शायद काम बन जाए...
लगाए बैठे हैं जोर ये सबको आजमाने में...
किसी को किसी के है चाल ने लूटा
किसी को किसी के है बाल गाल ने लूटा
यहां तो आशिक हैं सभी कंचन कोमल काया के
पर हमे तो लूटा था उनकी पलकों के मयखाने नें...
मैंने उसकी और उसने मेरी भावनाओं को समझा था
जुबां तक प्यार से लदी है हमारी
और वो आज तक शरमाती है
नजरें मिलाने में, नजरे मिलाने में....
हमने भी इश्क किया था इक जमाने में
नोट- ये रचना साल 2006 की है... तब मैं रांची के संत जेवियर्स कॉलेज से बीए कर रहा है... रचना के लिए उपयुक्त हालात औऱ पृष्ठभूमि मुझे कॉलेज प्रांगण में ही प्राप्त हुए थे
5 comments:
woh jamana yaad hai....rehna chahiye....waise Ishq kaun bhulata hai....
Hmmm...good nicely written...! :)
-Jolly
...रहने दो इसे अपने पास यूं ही हमेशा...
जब कभी किसी की रुसवाई दिखे....
जब किसी की बेवफाई दिखे...
ये चंद पंक्तियां उन्हें दिखा जाना...
मुहब्बत किसे कहतें हैं बता जाना...
क्योंकि इश्क करने में और इश्क दिखाने में ....
उतनी ही दूरी है जितनी इन पंक्तियों को पढ़ने में और महसूस करने में....
...बहुत बढ़िया सर....
वाह! प्रभात सर, क्या ख़ूब लिखा है आपने... अभी तक आपका script प्रेम देखा था आज कविता प्रेम भी देख लिखा। दोनों में ही लाजवाब... माशा-अल्लाह!
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