उसकी आंखें बोलती हैं..
बड़ी-बड़ी हैं शायद इसलिए वो तेज आवाज करती हैं
मेरी आंखों से जब भी टकराती हैं उसकी आंखें
पहले टक्कर में उसकी पलकें जल्द ही गिर जाती हैं
और कपोलों पर उमंग के साथ अधरों पर तरंगें छा जाती हैं
फिर कुछ देर तक छा जाती है खामोशी
उस खामोशी में सुनाई देती है तो सिर्फ धड़कनों की तेज आवाजें...
वो आवाज देती है ताकत पलकों को उठाकर उसे फिर से देखने का
दिल कहता है बहुत अच्छा चल रहा है
दिमाग कहता है... बेटा संभल के
मैं अक्सर दिल की नहीं सुनता
लेकिन उस वक्त मेरा दिमाग हार जाता है
दिल हिलोरे मारने लगता है
आंखे फिर उन झील सी गहरी आंखों से चार होने को बेताब हो जाती है
शायद उसके साथ भी ऐसा ही कुछ होता है
तभी तो मेरे देखते ही वो भी मेरी आंखों को निहारने लगती है
मानो जैसे खामोंशी में दो दिलों ने एक दूसरे की बात सुन ली हो
ये सिलसिला हर रोज दो या तीन बार होता है
इसके बाद उसके जाने का वक्त हो जाता है
जाते वक्त मैं उसके घनघोर जुल्फों में खो जाता हूं..
लेकिन न जाने उसे कैसै इसका भी पता चल जाता है
और वो आखिरी बार मुझे उस मोड़ से देखती है..
जहां से देखने की अंतिम संभावनाएं होती हैं...
इसके बाद उसे कैसा लगता है मुझे नहीं मालूम
लेकिन कुछ पल की मायूसी के बाद
मैं फिर करने लगता हूं अगले दिन का इंतजार...
क्या इसी को कहते हैं.. मुहब्बत, इश्क और प्यार
Tuesday, August 18, 2009
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11 comments:
प्रभात जी मुझे ये तो नहीं पता कि ये ही प्यार है लेकिन आपकी रचना वाकई में खूबसूरत है......
प्रभात जी आपकी ये रचना बहुत खूबसूरत है....लेकिन ये रचना तो वही कर सकता है जिसने कभी किसी के साथ प्यार को महसूस किया हो...
वाह क्या बात है, बहुत सुंदर रचना
बस्स.....इतना ही कह सकता हूं....कि आज दिखा छलिया का रुप....नाम के अनुरुप....भले ही हकीकत न हो.....आपके शब्दों में
प्यार में तो यही खामोशी है जो बोलती है..
और सुनती भी है...
जाने क्यों इसकी ताकत...
यह खामोशी...
कभी किसी आशिक को सूली पर चढ़ाता है..
और कभी किसी को गले लगाता है...
पता नहीं ये क्या है...
जो इसे बल देती है...
इजहार करने का साहस देती है...
और कभी- कभी टूटकर बिखरने को मजबूर करती है..
ये ही इसकी अदा है...
इसका सम्मोहन है..
जो बिगड़ों को इंसान...
और इंसान को बिगड़ा बना देता है...
....आपकी रचना उम्दा है सर....अपनी रचना से यों ही हमें तृप्त करते रहें...
kya baat hai mottuu :P mujhe nahi pata tha ki tum itna acha bhi sochte ho aur likh bhi sakte ho bahut sundar rachna hai...
इन भावों को महसूस किए ज़माने हो गए। आजकल दिमाग की ही ज़्यादा सुनता हूं, लेकिन आपकी कविता पढ़कर पुराने दिन याद आ गए। पहले प्यार की एकदम सहज और निश्छल अभिव्यक्ति। बेहतरीन.......जितनी भी तारीफ़ की जाए कम है। ऐसे ही अपने अनुभवों को बयां करते रहें।
लगता है आपने भी कभी किसी के प्यार में गोता लगाया है
प्रभात पता नहीं तुम्हें क्या कहूं पर प्यार का अहसास शायज ऐसा ही होता है जैसा की तुमने महसुस किया है वो लड़की वाकई में खुशनसीब होगी जो तुम्हें आखरी मोड़ तक देखती है और क्या बताऊ हमें पता भी है कि वो लड़की वाकई में बहुत सुंदर है जिसका तुम दूसरे दिन तक इंतजार करते हो। अच्छा लिखा :)
सही है भाई लगे रहो...कभी कह भी देना क्या देखते ही रहोगे क्या
मालिक
प्यार की अनंत परिभाषाएं हैं...
हर व्यक्ति अलग से परिभाषित करता है
लेकिन हकीकत में प्यार है क्या चीज़
आज तक कोई भी नहीं जान पाया.......
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